Thursday, February 1, 2007
बस एक सवाल!
सवाल... अपने आप में कितना अधूरापन लिए हुए है। सवाल सुनते ही ...जवाब की उम्मीद होती है, कितना अकेलापन है इस शब्द में। लेकिन कभी लगता है कि जबाव की अहमियत भी तो इसी से है। लेकिन फिर क्या वजह है कि मन कई बार सवाल करता है...लेकिन जवाब नहीं होता। कई बार जवाब जानते हुए भी मन सवाल करता है। क्यों दोनों आपस में मिलना नहीं चाहते.. जबकि दोनों जानते हैं कि एक-दूसरे के बिना दोनों का कोई औचित्य नहीं है।
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