Sunday, November 18, 2007

ख़त आया है

ख़त आया है।

कोई लिफ़ाफा नहीं। कोई अंतरदेसी नहीं..न ही कोई पोस्टकार्ड

ई-मेल भी नहीं।

ख़त आया है।

आसमां में सात तिरछी रेखाओं की स्याही से इसे लिखा है

बादल भी उसे रंग देने के लिए कुछ सांवले पड़ गए

धरती ने मुस्कुराना शुरू कर दिया,

जब बूंद-बूंद अक्षर पढ़ना शुरू किया

खुशी से झूम उठी वो,

अंग-अंग मस्ती में भिगो गया...

वो बांवरा...ख़त

इठलाता सपना

दे गया।

Wednesday, November 14, 2007

पानी से आसमां का मिलन

पिछले दिनों मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल जाना हुआ। मैनें यहां करीब पांच साल बिताए। पुरानी यादें ताज़ा हो गईं। यूं तो भोपाल बहुत खूबसूरत शहर है। वहां का दो तालाब हैं। एक बड़ा तालाब, जिसे लोग लेक व्यू के नाम से जानते हैं। यहां बहुत भीड़ होती है। दूसरा शाहपुरा, छोटा तालाब। ये छोटा है, यहां ज्यादा भीड़ नहीं होती। मुझे ये बेहद पसंद है। ये गवाह है मेरी हर छोटी-बड़ी खुशी, छोटे-बड़े दुख का। जब भी मन बहुत खुश हुआ या बहुत उदास, इसी से आकार बांटा। इतने साल बाद जब इसे देखा तो लगा पुराने दिनों में लौट गए।
किसी ने सच कहा है यादें हमेशा तकलीफ देती हैं। अच्छी हों तो उनके अब न होने का ग़म। बुरी हों तो भी भारी मन। लेकिन इनके बिना जिया भी तो नहीं जा सकता।