Friday, March 2, 2007

पांचवी हेडलाइन

हेडलाइन यानि सुर्खियां, वो ख़बरें जो सबसे महत्वपूर्ण हैं। प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, हेडलाइन ..मार्केट दिलाती हैं, प्रतियोगिता कराती हैं, टीआरपी सेट करती हैं। गौर करें तो पांच या छह ही मुख्य ख़बरों को उनमें जगह मिलती है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने तो इसका दायरा पांच का सीमित कर दिया है। शुरू की चार हेडलाइन तक तो कोई दिक्कत नहीं....ये अक्सर सभी की एक जैसी ही होती हैं। अंतर पैदा करती है पांचवी हेडलाइन।
प्रिंट की बॉटम स्टोरी और इलेक्ट्रॉनिक की आखिरी हेडलाइन। भले ही ये पेज का आखिरी हिस्सा कवर करे या आखिरी नंबर पर हो लेकिन इसे जुटाने में बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं। वैसे मान्यता है कि ये हेडलाइन कोई सॉफ्ट स्टोरी होती है। सॉफ्ट से यानि रूई की तरह नहीं.. ह्यूमन स्टोरी...फीचर या इसी से जुड़ी कोई ख़बर। वो हिस्सा जहां ख़बर से ज़्यादा भावनाएं स्थापित की जा सकें।फिर भावनाओं को भुनाना हिंदुस्तान की पुरानी आदत है। इस पर बना कोई भी सामना खूब बिकता है।
कभी तो ये बहुत आसान होती है तो कभी बहुत मुश्किल। इनमें या तो उन स्टोरीज़ को शामिल करें जो चैनल की विशेष उपलब्धि हो यानि इस मामले में मेहनत ज़्यादा है। आसान इस संदर्भ में कि वेलेंटाइन डे,किस डे, दशहरा या दीवाली इसे आसान बना देते हैं। आजकल तो नायक,. महानायकों के जन्मदिन ...इस पर छाए रहते हैं। डे स्पेशल होना...टीवी वालों के लिए राहत देता है। लता का जन्मदिन, आशा का जन्मदिन, महानायक अमिताभ बच्चन का जन्मदिन....भगवान इनकी उम्र लंबी रखे कोई और दे न दे...टीवी वालों के मन से ये दुआ ज़रूर निकलती होगी। बर्थडे आया नहीं कि बन गई टीम और सब जुट गए दुआएं जुटाने में। केवल जन्मदिन ही नहीं ड्राइ दिनों में तो मरण दिन भी याद आ ही जाता है। ड्राइ दिन यानि जब कोई मुद्दा खेला न जा सके। ये टीवी की भाषा है, जो भले ही बुरी लगे लेकिन अपनाई जाने लगी है। मुद्दे पर लौटते हैं,किशोर की पुण्यतिथि, इंदिरा या नेहरू की पुण्यतिथि....ड्राइ दिनों में डूबते को तिनके के सहारा के समान हैं। हर साल की मेहनत छोड़िए पिछले साल का archive निकालिए....कुछ जोड़िए कुछ घटाइए....और बना डालिए नये पैकेज,आपकी पांचवी हेडलाइन तैयार है।