Sunday, June 29, 2008

किसी की मजबूरी, किसी का मजा

आरूषि-हेमराज हत्याकांड पर मीडिया ने जो कुछ किया, अब उसे वाह-वाही दे या कोसें समझ से परे है। कुछ मीडियाकर्मी कॉलर ऊंची कर रहे हैं कि हमने पुलिस का ध्यान इस ओर दिलाया लेकिन नतीजा क्या है,सामने है। चलिए इस बहस से अगल एक दूसरी ख़बर की ओर ध्यान देते हैं। ये घटना है मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर की। जबलपुर को शायद लोग भेड़ाघाट की वजह से पहचानें, जहां संगमरमर की चट्टाने हैं। इस शहर में एक मीडियाकर्मी ने एक बुजुर्ग आदमी और महिला के सामने लोकलाज की चट्टान खड़ी कर दी। ज्यादा घुमा-फिराने से अच्छा है सीधी बात कही जाए। तो साहब वाकया कुछ ऐसा है कि एक कर्तव्ययोगी मीडियामैन घूमता हुआ कोर्ट पहुंचा, जहां उसे पता चला कि 84 साल के व्यक्ति ने अपनी 54 साल की विधवा बेटी से शादी कर ली। यकीनन ये आम बात नहीं और जब आम नहीं तो न्यूज़ तो है ही। उन्होंने पूरा पता लगाया और पहुंच गए कैमरा लेकर उस इलाके में जहां ये दोनो रहते थे। कोशिश की, कि पड़ोसी कुछ बताएं,पड़ोसियों ने कहा हम तो यही जानते हैं कि दोनों बाप-बेटी हैं, शादी कब कर ली हमें नहीं पता। उनके घर को अपने बाप का घर समझ कर मीडियामैन घुस गया अंदर. तमाम सवाल दाग दिए क्यूं किया ऐसा घिनौना कृत्य, क्या आपको लाज नहीं आई, समाज क्या कहेगा आपको.. वगैरह वगैरह। बुजुर्ग व्यक्ति ने बड़े इत्मीनान से कहा कि पहले तो ये मेरी बेटी नहीं, बेसहारा थी तो मेरे साथ रहने लगी..इसका आगे-पीछे कोई नहीं। मैं बिस्तर में बीमार पड़ा हूं..कब यमराज बुला लें, फिर कौन करेगा इसका पालन-पोषण अब संतुष्टी है कम से कम अब मेरे बाद इसे पेंशन तो मिलेगी। लेकिन भई मीडिया के ऊपर तो समाज की ज़िम्मेदारी है,कल तक जो बातें चार दीवारी में थीं उसके विजुअल्स पूरे शहर में फैल गए, चैनल ने बड़ी ख़बर मानकर खूब चलाया। जो मोहल्लेवाले कल तक झुककर नमस्ते कर रहे थे,आज थूक रहे हैं। लेकिन चैनल को क्या उसने तो आधे घंटे की टीआरपी बटोर ली। जो लोग उन्हें धिक्कार रहे हैं क्या उन्होंने एक बार भी सोचा कि अगर उन्हें अवैध संबंध बनाने ही होते तो कोर्ट के सर्टिफिकेट की क्या ज़रुरत थी, क्या जो बाप अपनी बेटियों से बलात्कार करते हैं वो बाद में कोर्ट का सर्टिफिकेट लेते हैं, या जो बहुए अपने ससुर,जेठ या देवर की हवस का शिकार बनती हैं उन्हें सर्टिफिकेट दिया जाता है। सब जानने के बाद भी ये क्यूं नहीं सोचना चाहते ही उम्र के जिस पड़ाव में वो दोनों हैं वहां शरीर की नहीं पेट की भूख ज्यादा मायने रखती है। एक पिता ने सोचा वो अपनी बेटी का भविष्य सुरक्षित कर जाए लेकिन उसकी तुलना उन बापों से कर दी गई,जिन्होंने अपनी बेटियों का जीवन नर्क कर दिया। वाह रे हमारी सोच, सच है सही-गलत आज मीडिया की नज़रों से लोग देखने लगे हैं।

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